Sugarcane Farming:उत्तर प्रदेश में तीन कारणों से गन्ने की फसल पीली होकर सूख रही है, कृषि विभाग ने बताए उपाय

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आपको बता दे की इस साल उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल के पीले पड़ने और सूखने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। गन्ना विभाग ने इस समस्या के पीछे तीन मुख्य कारणों की पहचान की है और किसानों को इससे बचने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। गन्ना विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को इन सुझावों पर अमल करना चाहिए ताकि गन्ने की फसल को पीला पड़ने और सूखने से बचाया जा सके।

किसानों ने गन्ना विभाग से गन्ने की फसल पीली पड़ने की शिकायत की थी। इसके बाद 23 अगस्त 2024 को उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद और भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम गठित की गई। इस टीम ने 27, 28 और 29 अगस्त को संबंधित जिलों का दौरा कर फसल में लगने वाले रोगों का निरीक्षण किया। अपनी रिपोर्ट में इस टीम ने गन्ने की फसल में पीलेपन के कारण, उपचार और रोकथाम को लेकर सुझाव दिए हैं।

गन्ना विकास विभाग की ओर से नियुक्त टीम के अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में बताया है कि फसल में पीलापन मुख्य रूप से उकठा रोग के शुरुआती लक्षण के तौर पर पहचाना गया है। इसके अलावा कुछ जगहों पर जड़ छेदक, मिलीबग कीट का असर भी देखने को मिला है, जिससे गन्ने की फसल पीली पड़ कर सूख रही है।

Sugarcane Farming  गन्ने की इन किस्मों में है ज्यादा दिक्कत

यह समस्या मुख्य रूप से कुछ गन्ना किस्मों जैसे को. 11015, को. 15027, को. बीएसआई 8005, को. बीएसआई 3102 तथा को. बीएसआई 0434 में पाई गई, जो कि प्रदेश के लिए स्वीकृत नहीं हैं। इसके अलावा प्रदेश की स्वीकृत गन्ना किस्मों को. 15023 तथा को. 0118 में इस रोग का प्रभाव अधिक पाया गया है। गन्ने की फसल पर इस रोग के प्रकोप के कारणों में सामान्य से कम वर्षा, कम आर्द्रता, मिट्टी में नमी की कमी तथा अधिक तापमान जैसे कारक शामिल हैं, जो उकठा रोग तथा जड़ छेदक कीट के लिए अनुकूल होते हैं। गन्ना विभाग ने सुझाव दिया है कि किसान सबसे पहले अपने खेतों का निरीक्षण कर फसल के पीले पड़ने का सही कारण पता कर लें। कीट व्याधियों की सही पहचान कर उसके अनुसार उपचार करना बहुत जरूरी है।

इस वजह से फसल में पीलेपन की समस्या आ रही है

गन्ना विकास विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार गन्ने की फसल के पीले पड़ने का एक मुख्य कारण विल्ट रोग है, जो ‘फ्यूजेरियम सैचरोई’ नामक फफूंद से होता है। विल्ट रोग गन्ने के पौधों को बुरी तरह प्रभावित करता है। यह ‘फ्यूजेरियम सैचरोई’ नामक फफूंद से होता है, जिसके कारण पौधे पीले पड़कर सूखने लगते हैं। इसके लक्षणों में गन्ने के अंदरूनी भाग का खोखला हो जाना, लाल-भूरा रंग आना, गन्ने का वजन कम होना, अंकुरण क्षमता का कम होना तथा गन्ने की उपज और शर्करा की मात्रा में कमी आना शामिल है।

गन्ने के छिलके पर भूरे धब्बे पड़ना, पपड़ी का बैंगनी या भूरा हो जाना तथा दुर्गंध आना भी इसके लक्षण हो सकते हैं। विल्ट रोग होने पर प्रणालीगत फफूंदनाशक जैसे थायोफैनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी. 1.3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी. 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15-20 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। इसके बाद सिंचाई करें तथा 4 किग्रा ट्राइकोडर्मा को 40-80 किग्रा सड़ी गोबर की खाद या प्रेसमड में मिलाकर प्रति एकड़ गन्ने की जड़ों के पास प्रयोग करें।

गन्ना किसान इन बातों पर ध्यान दें

मिट्टी में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बनाए रखने के लिए ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग न करें।

• अनावश्यक रूप से नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अधिक मात्रा में प्रयोग न करें।

• सोशल मीडिया या असत्यापित स्रोतों से प्राप्त रसायनों का दुरुपयोग न करें।

• शरदकालीन गन्ना बुवाई के लिए स्वस्थ नर्सरी से प्राप्त स्वस्थ गन्ना बीज का ही प्रयोग करें तथा अनुमोदित किस्मों की ही बुवाई करें।

• बुवाई से पहले बीज को किसी प्रणालीगत कवकनाशी (जैसे कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0.1% या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 0.5%) के घोल में कम से कम 10 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें।

• ट्राइकोडर्मा का प्रयोग केवल अधिकृत स्रोत से ही करें तथा इसकी समाप्ति तिथि का ध्यान रखें। इन उपायों का पालन करके गन्ने की फसल में होने वाली समस्याओं को रोका जा सकता है तथा उपज में सुधार किया जा सकता है।

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